

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर स्पीकर ओम बिरला की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने विरोध जताया। विपक्ष ने स्पीकर को पत्र सौंपते हुए कहा कि नेता प्रतिपक्ष को बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा है माइक्रोफोन बंद किए जाते हैं और लोकसभा उपाध्यक्ष का पद रिक्त है। विपक्ष ने इसे लोकतांत्रिक परंपराओं का उल्लंघन बताया और निष्पक्ष संचालन की मांग की।
स्पीकर को सौंपे गए पत्र में क्या आरोप लगाए?
विपक्ष की ओर से स्पीकर को सौंपे गए पत्र में कार्य मंत्रणा समिति के निर्णयों की अनदेखी, स्थगन प्रस्ताव नोटिस को पूरी तरह निष्क्रिय बना दिए जाने, सदस्यों के निजी विधेयकों और प्रस्तावों की उपेक्षा, बजट और अनुदान मांगों पर चर्चा में प्रमुख मंत्रालयों को शामिल न करना, नियम 193 के तहत बेहद कम चर्चाएं करना और सदन में मसले उठाने के दौरान विपक्षी सदस्यों के माइक्रोफोन बंद कर दिए जाने जैसे विषय उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि जब भी विपक्षी सांसद कोई मुद्दा उठाते हैं तो उनके माइक्रोफोन बंद कर दिए जाते हैं और इसके विपरीत सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्री या सांसद जब भी बोलना चाहते हैं तो तुरंत उन्हें बोलने की अनुमति दी जाती है।
विपक्ष के आरोप?
गौरव गोगोई ने प्रतिनिधिमंडल की स्पीकर से मुलाकात के बाद कहा कि विपक्षी नेताओं के संयुक्त हस्ताक्षर का पत्र बिरला को सौंपा गया है जिसमें हमने सदन के संचालन में नियमों-परंपराओं की धज्जियां उड़ाए जाने पर अपनी सामूहिक चिंता और निराशा व्यक्त की है।स्पीकर की ओर से नियम 349 का संदर्भ लेकर नेता विपक्ष पर टिप्पणी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वह किस विशिष्ट घटना का उल्लेख कर रहे थे, यह स्पष्ट नहीं है। साथ ही हमने स्पीकर का ध्यान आकृष्ट किया कि किस तरह उनकी टिप्पणी का इस्तेमाल कर दुष्प्रचार और राजनीति की जा रही है।
विपक्षी नेताओं ने किस परंपरा का दिया हवाला?
विपक्षी नेताओं के पत्र में परंपरा का हवाला देते हुए कहा गया है कि जब भी नेता प्रतिपक्ष खड़े होते हैं, तो उन्हें बोलने की अनुमति दी जाती है। मगर मौजूदा सरकार बार-बार विपक्ष के नेता को बोलने का अवसर देने से इनकार कर रही है और यह पिछली प्रथाओं से अलग है जब टकराव की स्थिति में भी विपक्ष के नेता की बात सुनी जाती थी।
लोकसभा उपाध्यक्ष का पद 2019 से ही रिक्त होने को अभूतपूर्व बताते हुए कहा गया है कि सदन की तटस्थता और कामकाज में उपाध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, फिर भी सरकार चुनाव कराने में विफल रही है। स्थगन प्रस्ताव के संबंध में शिकायत की गई है कि इसे अब पूरी तरह नजरअंदाज या सरसरी तौर पर खारिज कर विपक्षी सांसदों को तत्काल सार्वजनिक मुद्दे उठाने से वंचित किया जा रहा है।
