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क्यों असफल है नमामि गंगे परियोजना ?

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प्रतीकात्मक तस्वीर

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना 2014 में शुरू की गई थी जिसके तहत गंगा नदी समेत कई नदियों की सफाई की जानी थी। हालांकि परियोजना की रफ्तार अपेक्षाकृत धीमी रही है। इसके लिए सबसे अहम वजह निकलकर सामने आई है एसटीपी के निर्माण की धीमी गति। जानिए योजना की क्या है अब तक की स्टेटस रिपोर्ट।

गंगा और दूसरी नदियां क्यों नहीं साफ हो पा रही हैं। जवाब है- जल शोधन संयंत्र यानी एसटीपी बनने, संचालित होने और चलते रहने की प्रक्रिया धीमी बनी हुई है। नमामि गंगे परियोजना के तहत 290 एसटीपी की योजना बनाई गई, लेकिन केवल 147 अभी तक बन सके हैं। बाकी 143 निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।

अगर ये बन जाते तो दूषित जल शोधन की क्षमता दो गुनी हो जाती। हालांकि, जरूरत इससे भी नहीं पूरी होती, क्योंकि बन जाने के बाद सारे एसटीपी अधिकतम 6,274 मिलियन लीटर प्रति दिन जल शोधित कर सकेंगे, जबकि केवल आज की जरूरत ही कम से कम 12 हजार मिलियन लीटर प्रति दिन है।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने लगाया अनुमान

यह अनुमान उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का है। जल शक्ति मंत्रालय ने दिसंबर 2026 तक स्वच्छ गंगा मिशन के तहत 7,000 एमएलडी की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। विशेषज्ञों के अनुसार यही अंतर समस्या की जड़ है, जो हर दिन गंभीर होती जा रही है।

आश्चर्य नहीं कि केंद्रीय जलशक्ति मंत्री ने राज्यों और अन्य एजेंसियों को 31 दिसंबर तक नदियों की सफाई के सारे भावी प्रोजेक्टों, जिनमें एसटीपी भी शामिल हैं, की डीपीआर हर हाल में तैयार करने के लिए कहा है। इसके बाद कोई प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाएगा, क्योंकि राज्य डीपीआर बार-बार बदल रहे हैं और 2026 की समय सीमा का पालन न हो पाने का खतरा मंडरा रहा है।

2014 में शुरू की गई थी परियोजना

नमामि गंगे परियोजना जून 2014 में शुरू की गई थी और इसके क्रियान्वयन में सारे दूषित जल के शोधन के लिए एसटीपी का निर्माण सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा गया था। पाटिल अपने अब तक के कार्यकाल में नमामि गंगे परियोजना की तीन बार समीक्षा कर चुके हैं। उनकी सक्रियता के कारण ही एनएमसीजी की राष्ट्रीय परिषद ने पिछले दो माह में लगभग दस नए एसटीपी को मंजूरी दे दी।

ये एसटीपी उत्तर प्रदेश और बिहार में स्थापित किए जाने हैं। इसके अलावा सीवेज इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों को लेकर गंगा पट्टी के दो-दो राज्यों के साथ अलग-अलग बैठक हुई है, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी भी मौजूद थे। पहली बैठक उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकारियों के साथ हुई और फिर बंगाल और उत्तराखंड के। इनमें सबसे अधिक 35 एसटीपी उत्तर प्रदेश में लंबित हैं। राज्य को इनके प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने हैं।

उत्तर प्रदेश ने दिखाई तेजी

अलीगढ़ में तीन एसटीपी के प्रस्ताव को एक महीने में मंजूरी मिल गई। वैसे अपने संसाधनों से एसटीपी लगाने के मामले में उत्तर प्रदेश ने तेजी दिखाई है। पिछले साल 133 छोटे-बड़े प्लांट लगाकर राज्य ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीत लिया। नमामि गंगे परियोजना के तहत 147 एसटीपी का संचालन किया जा रहा है, जिनकी कुल क्षमता 3327 मिलियन लीटर प्रति दिन है। जो एसटीपी प्रस्तावित हैं, उनकी कुल क्षमता लगभग तीन हजार एमएलडी होगी।

जलशक्ति मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार एसटीपी के मामले में केंद्र सरकार के पास अधिक विकल्प नहीं हैं। परियोजनाओं में देरी हुई है। कहीं पर राज्य एसटीपी निर्माण के लिए जगह का इंतजाम नहीं कर पाए, कहीं पर सड़क काटने का अनुमति नहीं मिली, कहीं वन और राजस्व विभागों की ओर से एनओसी नहीं मिली और कहीं पर बार-बार जगह बदलने के कारण प्रोजेक्टों में विलंब हुआ। यह विलंब इस हद तक हो रहा है कि 2023 में केवल दस एसटीपी बढ़ाए जा सके और क्षमता बढ़ी केवल 621 मिलियन लीटर प्रति दिन।

 

Red Max Media
Author: Red Max Media

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