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जमीयत उलेमा-ए-हिंद का एक महत्वपूर्ण फैसला

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जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया

नीतीश-नायडू के इफ्तार और ईद मिलन कार्यक्रमों का बहिष्कार करेगी जमीयत, लगाया ये आरोप

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। यह संगठन अब नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू जैसे सेक्युलर कहलाने वाले नेताओं के किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा। साथ ही अन्य मुस्लिम संगठनों से भी इनके कार्यक्रम का बहिष्कार करने की अपील की है।

प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने शुक्रवार को कहा कि वक्फ (संशोधन) विधेयक पर रुख को देखते हुए वह नीतीश कुमार, एन चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान के इफ्तार, ईद मिलन और दूसरे कार्यक्रमों का बहिष्कार करेगा तथा दूसरे मुस्लिम संगठनों को भी ऐसा करना चाहिए। जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में आरोप लगाया कि ये नेता सरकार के ‘संविधान विरोधी कदमों’ का समर्थन कर रहे हैं।

सेक्युलर नेताओं के कार्यक्रमों का बहिष्कार करेगी जमीयत

अरशद मदनी ने कहा कि खुद को सेक्युलर कहने वाले वे लोग, जो मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार और अन्याय पर चुप हैं और मौजूदा सरकार का हिस्सा बने हुए हैं, उनके खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सांकेतिक विरोध का फैसला किया है। इसके तहत अब जमीयत उलमा-ए-हिंद ऐसे लोगों के किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेगी, चाहे वह इफ्तार पार्टी हो, ईद मिलन हो या अन्य कोई आयोजन हो।

उन्होंने दावा किया, ‘‘देश में इस समय जिस तरह के हालात हैं और खासकर अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के साथ जो अन्याय और अत्याचार किया जा रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है। लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष और मुसलमानों का हमदर्द बताने वाले नेता, जिनकी राजनीतिक सफलता में मुसलमानों का भी योगदान रहा है, वे सत्ता के लालच में न केवल खामोश हैं, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से अन्याय का समर्थन भी कर रहे हैं।’’

‘मुसलमानों पर हो रहे अन्याय पर चुप्पी साधे हुए हैं नेता’

मदनी ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान जैसे नेता सत्ता की खातिर न केवल मुसलमानों के खिलाफ हो रहे अन्याय को नजरअंदाज कर रहे हैं, बल्कि देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की भी अनदेखी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वक्फ संशोधन विधेयक पर इन नेताओं का रवैया इनके दोहरे चरित्र को उजागर करता है। ये नेता केवल मुसलमानों के वोट हासिल करने के लिए दिखावे का धर्मनिरपेक्षता को अपनाते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को पूरी तरह भुला देते हैं। इसी के मद्देनजर जमीयत उलमा-ए-हिंद ने निर्णय लिया है कि वह ऐसे नेताओं के आयोजनों में शामिल होकर उनकी नीतियों को वैधता प्रदान नहीं करेगी।’’

मदनी ने देश के अन्य मुस्लिम संगठनों से भी अपील की है कि वे भी इस सांकेतिक विरोध में शामिल हों और इन नेताओं की इफ्तार पार्टी और ईद मिलन जैसे आयोजनों में भाग लेने से परहेज करें।

Red Max Media
Author: Red Max Media

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